ijhaaredil
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कार्तिक चर्तुदशी
शुक्लपक्ष
चाँदनी रात
दुल्हन की तरह सजा
गंगा का घाट,
रेत पर पङती
चन्द्र किरणेँ,
मधुर संगीत की ध्वनि,
कहीँ नाटक,
कहीँ नौटंकी,
कहीँ चल रही रागनी,
कतारबद्ध दुकानेँ,
तरह का सामान,
मिठाई, रसगुल्ले, पकवान,
तम्बुओँ मेँ रहते लोग,
मानो कि कोई शहर बसा है,
जहाँ न दुख, दर्द और चिन्ता है,
रात्रि का अदभुत दृश्य,
जल पर तैरते चिराग,
जैसे गंगा माँ ने
चमकीले सितारोँ जङी
ओढनी पहनी है,
आज आकाश जमीँ
उतर आया है,
मनोहारी, सुहावना,
दिलकश मंजर,
हर दिल को भाया है,
परम्परा का निर्वाहन
है ये दीपदान,
मृत आत्माओँ की
शाँति के लिए,
ऋणोँ से उऋण
होने के लिए,
मुक्ति के वास्ते
लोग दीप जलाते हैँ,
और पुण्य कमाते हैँ ।
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