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हर हिन्दू वतनपरस्त नहीँ होता, हर मुसलमाँ दहशतगर्द नहीँ होता,

ijhaaredil
ijhaaredil
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हर हिन्दू वतनपरस्त नहीँ होता,
हर मुसलमाँ दहशतगर्द नहीँ होता,
है कौन सा दीन दुनिया मेँ ऐसा,
इन्सान जिसमेँ खुदगर्ज नहीँ होता,
देता है पैगाम अमन, भाईचारे का,
गुनाह का पैरोकार कोई धर्म नहीँ होता,
भूखे तन को चाहिए फ़कत भोजन,
भुखमरी से बदतर कोई मर्ज नहीँ होता,
नंगा बदन, गंदगी मेँ जीवनयापन,
गरीबी से बुरा कोई नर्क नहीँ होता,
सभी को तालीम, ना समझे कोई यतीम,
राजा का इससे बङा कोई फर्ज नहीँ होता,
बाँटे दिलोँ को और फैलाये नफरत,
काबिले एहतराम वो इल्म नहीँ होता,
गर मिलकर रहेँ और बाटेँ खुशियाँ,
तो धरती से सुन्दर कोई स्वर्ग नहीँ होता,

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