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मैँ रोटी हूँ,
कहीँ गोल, कहीँ चौकोर,
कहीँ पतली तो कहीँ मोटी हूँ,
मेरे ही पहिये पर चढकर,
इन्सा पूरा करता जिन्दगी का सफर,
मैँ बना देती हूँ आदमी को क्या से क्या,
कभी मदारी,
कभी शिकारी,
उछलता है बन्दर की तरह,
नाचता है भालू की तरह,
चल जाता है शोलोँ पर,
बैठ जाता है बर्फ के गोलोँ पर,
मैँ बङी किस्मत से मयस्सर होती हूँ,
अमीरोँ की महफिल मेँ मेरा जायका है थोङा कम,
पर गरीब का है मेरे दम से दम,
मेरे लिए इन्सान कुछ भी कर सकता है,
कत्ल कर सकता है,
भीख माँग सकता है,
चोरी डकैती से न उसको गुरेज हो सकता है,
मैँ अमीर गरीब दोनोँ को प्रिय होती हूँ ,
ऐ मेरा अपमान करने वालो,
फाकोँ की आमद को दावत देने वालो,
आज मगरूर हो अपना पेट भर,
जरा देखो झोँपङियोँ मेँ चलकर,
मेरे एक टुकङे के कई तलबगार हैँ,
इस मुल्क मे लाखोँ भुखमरी के शिकार हैँ,
मैँ सबसे सम्मान की हकदार होती हूँ,
जब आदमी मुझसे छक जाता है,
तब सोचता है
आजादी के बारे मेँ,
अधिकारोँ के बारे मेँ,
आविष्कारोँ के बारे मेँ,
आत्मा के बारे मेँ,
परमात्मा के बारे मेँ,
कभी-2 मेँ खुदा से भारी होती हूँ ।
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