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देखकर मुल्क की हालत,
मेरे जेहन में ख्याल आता है,
जो मुझे हरदम तडफाता है,
कि क्या यह
वही है हिन्दुतान,
हो गए थे जिसकी खातिर
कितने ही लाडले कुर्बान,
चूम लिया था हँसते -२
फांसी के फंदे को,
करने को हमें आज़ाद,
भगाने फिरंगी को,
सिला अच्छा दे रहें हम
उनकी कुर्बानियों का,
फैला हुआ है जाल हर तरफ
बेईमानियों का,
ये सियासतदां
जो बने हमारे रहनुमां,
हैवानियत की
सारी हदें पार कर जाते हैं
कभी मंदिर तो कभी मस्जिद
गिरवाते हैं,
सरेआम जनता को
क़त्ल करवाते है,
ये कफनचोर,
होटलों में बैठकर
व्हिस्की, रम, विलायती भोजन
उड़ाते हैं,
जबकी गरीब के बच्चे
दो जून कि रोटी के लिए
बिलबिलाते हैं,
दिखाते हैं सब्जबाग
कि मुल्क से गरीबी व्
तमाम मुश्किलात हटा दंगे,
पर अंदर ही अंदर
गरीबी नहीं गरीब को ही हटाने के
ख्वाब सजाते हैं,
ये कैसा है प्रजातंत्र
जो बन गया है इनकी
शैतानी चालों का
मूलमंत्र,
लेकर इसका सहारा
बचाते है कुर्सी को
चाहे बेचना क्यूँ न पड़ जाए
देश कि इज़ज़त को
उठो भाईओ उठो
फन कुचल डालो इन
ज़हरीले नागों के,
वर्ना पछतावा ही रह जायेगा,
मंदरे वतन
एकबार फिर,
गुलामी के साये में
खो जायेगा
और हमें
अपनी तक़दीर पर
रोने के सिवाय
कुछ न रह जायेगा |
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