ijhaaredil
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ये भीड़,
ये लोगों का हुजूं,
हर जगह पर होंगे
इससे रूबरू,
रेलवे स्टेशन,
राशन की दुकान
या मुसाफिरखाना,
इन जगहों का तो है
मंजर ही बड़ा सुहाना,
होती हैं लम्बी-२ कतार,
चीटीं कि तरह है
जिनकी रफ़्तार,
गर पड़ जाए
इन जगहों पर जाना,
तो घर से
नाश्ते कि वजाय
खाना खाकर ही निकलना,
अस्पताल,मदरसे या
इम्तहान के मरकज़(केन्द्र),
क्यों करते हो देखकर
इन्हें अचरज,
ये तो हमारी तरक्की के
नक्स(चिन्ह) हैं,
साधन बढ़ें या ना बढ़ें
बढ़ रहे सख्स हैं,
ये तरक्कीयाफ्ता मुल्क
चाहे कुछ भी बढ़ाएं,
आओ मिलकर हम
आबादी बढ़ाएं,
ऐ चीन,
सुनले तू
खोलकर कान,
तू भी ना रहेगा
हमारे समान,
तू नम्बरवन बनके
मत हो मगरूर,
होगा तू हमसे पीछे
वह दिन नहीं है दूर |
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