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एक दिन रेलवे स्टेशन पर खङा गाङी का इन्तजार कर रहा था । करीब मेँ खङे दो व्यक्ति आपस मेँ बातोँ मेँ मशगूल थे । अचानक मेरा ध्यान उनके वार्तालाप की ओर चला गया । मैँ गौर से उनको सुनने लगा । उनमे से एक ने कहा “यार, आज के जमाने मेँ रिश्तेदारन ते तो दोस्त अच्छे हैँ । रिश्तेदार जरूरत के टैम पै मदद तो करन्गे ना पर कोई मुसीबत बता कै उल्टै परेशान कर दंगे ।”
“तू ठीक कह रौय” दूसरे ने उसकी बात से सहमति जतायी ।
उनकी यह बात सुनकर मेरे जेहन मेँ मेरे सारे मित्र उभर आये ।
अपने दोस्तोँ को समर्पित कर रहा हूँ ये पँक्तियाँ :-
दोस्त,
चारागर(वैद्य) है,
जिसे हालेदिल सुनाकर,
तकलीफोँ को बताकर,
रोगोँ से निज़ात पा लेते हैँ ।
दोस्त
सुहानी डगर है,
जिस पर दो पल टहल कर,
प्रकृति को निहारकर,
थकान मिटा लेते हैँ ।
दोस्त
वह कन्धा है,
जिसपर सर रखकर,
दो अश्रु बहाकर,
दो घङी रोकर,
दिल हलका कर लेते हैँ,
दोस्त
एक आइना है,
सच का सामना है,
क्या अच्छा, क्या बुरा,
इससे कब छुपना है?
देखकर छवि अपनी
सूरत सँवार लेते हैँ,
दोस्त
एक इबादत है
कुरान की पाक आयत है,
बन्दे पर खुदा की
मासूम सी इनायत है,
दोस्त की सूरत मेँ खुदा का
दीदार कर लेते हैँ,
खुशनसीब हूँ मैँ कि
दोस्त ऐसे पाये,
जैसे जेठ की धूप मेँ
घने दरख्तोँ के साये,
तले बैठकर जिनके
दरम्यानेराह सुस्ता लेते हैँ ।
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