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नरेंद्र मोदी के आंसू jagran junction forum

ijhaaredil
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लाशों को देखकर मेरा दिल भी दहलता है
मैं भी इंसान हूँ कोई पत्थर का बुत नहीं,

जले हुए घर, सिसकते हुए लोग, रोते बिलखते बच्चे, बिखरी हुयी लाशें एक ऐसा दर्दनाक मंज़र पेश करते हैं कि पत्थर से पत्थर ह्रदय व्यक्ति के मुंह से भी आह निकल जाती है | अहमदाबाद हाईकोर्ट द्वारा नरेंद्र मोदी को 2002 के गुजरात दंगों के मामले में क्लीन चिट दिए जाने के अगले दिन मोदी ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि दंगों के समय वह खून के आंसू रो रहे थे | उन्होंने अपनी तरफ से हिंसा रोकने का भरपूर प्रयास किया | लेकिन एक प्रशासक को अपनी भावनाओ पर काबू रख कर कार्य पड़ता है | शायद ये मोदीजी के हृदयी उदगार हैं |
उपरवाले ने हर जीव को भावनाओं जैसे : प्यार, दया, सहानुभूति, करुणा आदि से सुसज्जित करके इस पृथ्वी पर भेजा है | इंसान क्योंकि सभी जीवों में श्रेष्ठ है इसलिए उससे से आशा की जाती है कि इन गुणों का उचित प्रकार से अवं समयानुकूल प्रयोग करे | यदि किसी के पैर मैं चोट तो आज लगी है, किन्तु हम एक महीने बाद उससे हालचाल पूछें तो हमारी संवेदना व्यर्थ है | यह तो केवल एक दिखावा लगेगी | इंग्लिश में एक कविता है सहानुभूति, मैं उसका हिंदी अनुवाद यहाँ रखने की कोशिश करता हूँ | कवि कहता है –

मैं बीमार हुआ
एक अमीर आदमी ने मुझे देखा,
एक शब्द भी न बोला,
मुझे सोना देकर चला गया,
मैं ठीक हो गया
और सोना लौटा दिया,
मैं दुबारा बीमार हुआ
एक गरीब आदमी ने मुझे देखा
मुझे दवा खिलायी
भोजन कराया,
मेरा सर दबाया,
मैं ठीक हो गया
पर कैसे उसकी सेवा को लौटाउंगा,
सोना तो कीमती है
पर सोने से भी बढ़कर
सहानुभूति है|
दंगों के कारण ही विपक्ष लम्बे समय से मोदी को कठघरे में खड़ा किया हुए है | कोई उन्हें मौत का सौदागर, तो कोई हिटलर जैसी उपाधियां देता है
, और तरह-२ से बदनाम करने के प्रयास में रहता है | आज जब भाजपा ने मोदी को अगले चुनाव में प्रधानमन्त्री पद के लिए प्रक्षेपित कर दिया है तो हमले और भी तेज हो गए हैं | लेकिन जो बात मोदी आज कह रहे हैं यह बात उनहोंने आज से दस साल पहले कह दी होती तो शायद इतना होहल्ला नहीं मचता | वह कोर्ट के निर्णय का इंतज़ार क्यों करते रहे | यदि उनकी आत्मा अपराध बोध से इतनी लहुलुहान थी तो अबतक किस बात का इंतज़ार कर रहे थे |
कोई भी राजा नहीं चाहेगा कि उसकी प्रजा दुखी रहे | कोई नहीं चाहेगा कि उसके राज्य में कत्लेआम हो | गुजरात दंगे गोधरा में 56 कारसेवकों को ट्रैन के डिब्बे में जिन्दा जलाये जाने की प्रतिक्रिया थी | ऐसी ही एक प्रतिक्रिया सन 1984 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के हत्या के बाद हुयी थी | जब खुद नेताओं ने दंगाईओं को वोटर लिस्ट उपलब्ध कराकर लोगों को मरवाया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है | और जनाब ने किसी तरह का पश्ताताप नहीं दर्शाया था | चलो देर से ही सही मोदी ने अपने दिल की बात कहने की हिम्मत तो की | इसलिए नरेंद्र मोदी का यह बयान कि मैं दंगों के समय रो रहा था, राजनीति से प्रेरित नहीं माना जाना चाहिए | कुछ लोग इसपर भी सियासत करने से बाज नहीं आयेंगे और कहेंगे कि मोदी ने ऐसा मुस्लिम वोटों को हासिल करने के लिए किया है |
किसी शायर ने कहा है कि :-
मुखालफत से मेरी शख्सियत चमकती है,
मैं अपने दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ |
विपक्ष ने जितने तीर मोदी पर चलाये, मोदी ने उन्ही तीरों को वापस फेंककर अपने विरोधियों को परास्त किया | लोकतंत्र में कहा जाता है कि सबसे बड़ी अदालत जनता होती है| वही फैसला करती है कि कौन अपराधी है या कौन निर्दोष | लालू, मुलायम, मायावती, और अनेक नेता जो कि कई घोटालों में फंसे हैं चुनाव जीतने के पश्चात् सीना खोलकर घोषणा करते हैं कि वे निर्दोष हैं | लेकिन मोदी लगातार तीनबार मुख्यमंत्री बनने के पश्चात् भी इस आरोप से मुक्त नहीं हो पाये हैं |
आज मोदी की छवि विकासपुरुष की बनी हुयी है | उनकी जन सभाओं में उमड़ता जनसमूह इस बात का द्योतक है की जनता मोदी को भारत के भविष्य के रूप में देख रही है | इसलिए वाजिब यही है की भूत को भुलाकर भविष्य की ओर देखा जाए |

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