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इस मर्तबा चुनाव का रँग कुछ अलग है,

ijhaaredil
ijhaaredil
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इस मर्तबा चुनाव का रँग कुछ अलैदा है
नहीँ सियासतदाँओँ के पास कोई ठोस मुद्दा है,
सिर्फ बुराई करना,
आरोप प्रत्यारोप,
गाली गलौज,
जैसे छिछोरे हथकंडे हैँ,
नैतिकता, मर्यादा के बन्धन टूटे हैँ,
कद करने को एक दूसरे
का छोटा,
हाथोँ मेँ थामे तरह-2 के रन्दे हैँ,
कोई सी0 डी0 निकालता है,
कोई फाइलेँ खुलवाता है,
कोई जनता को फोटो दिखाता है,
कोई किताबोँ के जरिये कीचङ उछालता है,
हालत सभी की गाँव की गली मेँ,
लङती हुयी देहाती औरतोँ जैसी है,
जो एक दूसरे पर
जमकर भङास निकाल रहीँ है,
और जनता तमाशबीन की तरह,
लङाई का लुत्फ उठा रही है,
ताली बजाकर उकसा रही है,
गरीबी को कोस रहे हैँ सभी,
पर कोई नहीँ बता रहा, कैसे हटायेगा वो गरीबी,
रोजगार देने का करते हैँ वादा,
पर बताते नहीँ करेँगे कैसे रोजगार पैदा,
वादोँ की फेरहिस्त तो है लम्बी,
लेकिन अमल के वास्ते नहीँ कोई स्पष्ट नीति,
मजहब और जाति का नशा सर चढा है,
इन्सानियत का हुलिया बिगङा है,
ऐ खुदा दे सदबुद्धि मेरे मुल्क के नेताओँ को,
बना दे महात्मा इन पतित आत्माओँ को ।

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