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“टीपू हारा, मराठे हारे,
हारे सिक्ख और सिन्धी,
बिक गये निजाम, सिन्धिया,
भारत माँ जन्जीरोँ मेँ बँधी,
दौलत लुटी, शोहरत मिटी,
हो गये अपने घर मेँ गुलाम हिन्दी”
1857 का स्वाधीनता संग्राम जिसे अँग्रेज इतिहासकार “सिपाही विद्रोह” कहते हैँ, भारतीयोँ द्वारा अँग्रेजी सत्ता को उखाङ फेँकने का प्रथम सामूहिक, समग्र एवं साहसिक प्रयास था । यद्यपि इसकी चिँगारी तो बैरकपुर छावनी मेँ मँगल पाण्डे द्वारा उठाये गये कदम के साथ ही भङक उठी थी, लेकिन चिन्गारी ने ज्वाला का रूप 10 मई 1857 को मेरठ छावनी मेँ लिया था । उस दिन मेरठ छावनी स्थित परेड ग्राउँड मेँ नियमित अभ्यास के दौरान 85 सैनिकोँ ने गाय व सुअर की चर्बी लगे इन्फील्ड राइफल के कारतूस जोकि मुँह से खोले जाते थे, प्रयोग करने से मना कर दिया । सैनिकोँ के विरूद्ध तुरन्त कार्यवाही हुयी । उनके हथियार रखवा लिये गये, वर्दी उतरवा ली गयी तथा हथकङी बेङी पहनाकर विक्टोरिया पार्क स्थित जेल मेँ बंद कर दिया गया । उसी दिन शाम को जेल मेँ बंद सैनिकोँ के कुछ साथी सदर बाजार मेँ खरीददारी करने गये, कहा जाता है कि उन सैनिकोँ पर वेश्याओँ ने चूङियाँ फेँकी और उन्हेँ कायर कहकर ताने कसे । इस घटना ने भारतीय सैनिकोँ के आत्मसम्मान को झकझोर दिया । आपस मेँ मँत्रणा हुयी । रात्रि मेँ जेल पर हमला किया गया । धनसिँह कोतवाल ने जेल का दरवाजा खोल दिया । 85 सैनिकोँ को आजाद करा लिया गया । इसके बाद तो “मारो फिरँगी को” के नारोँ से आकाश गुँजायमान हो गया । ढूँढ-ढूँढकर अंग्रजोँ को मौत के घाट उतार दिया गया । आगे की कार्यवाही निर्धारित करने के लिए सैनिकोँ ने दिल्ली की ओर कूच किया ।
मेरठ कैन्ट मेँ एक प्राचीन शिव मन्दिर स्थित है, जिसे आज बावा औघङनाथ मन्दिर के नाम से पुकारा जाता है । अँग्रेजी जमाने मेँ इसे काली पलटन का मन्दिर के नाम से पुकारा जाता था । क्योँकि उन दिनोँ भारतीयोँ की सैनिक टुकङियोँ को काली पलटन कहा जाता था और भारतीय सैनिक इस मन्दिर मेँ पूजा अर्चना करने आते थे । इस मन्दिर के तत्कालीन पुजारी ने ही सैनिकोँ के मन स्वतन्त्रता के बीज बोये थे ।
आज इसी मन्दिर के परिसर मेँ शहीद स्मारक स्थित हैँ जहाँ प्रतिवर्ष 10 मई को शहीदोँ को श्रद्धाँजलि देने हेतु कार्यक्रम आयोजित किया जाता है ।
हम जानते हैँ कि क्राँति तो असफल हो गयी थी, लेकिन उन वीरोँ का प्रयास इतिहास मेँ हमेशा स्वर्णाक्षरोँ मे अंकित रहेगा ।
“दी प्रथम आहूति जिन्होने
स्वतन्त्रता के पावन यज्ञ मेँ,
मरकर भी हो गये अमर
इस नाशवान जग मेँ,
शत शत नमन है
उन रणबाँकुरोँ को,
श्रद्धासुमन अर्पित है
उन वीर बहादुरोँ को”
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