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कैसे कर सकते हैँ उस पर भरोसा,
जो जख्म पर जख्म देता रहा है,
हमारे संयम, धैर्य का
इम्तहान
कदम दर कदम लेता रहा है,
जब भी बाहेँ फैलाकर मिले हम गले,
पीठ मेँ खँजर भौँकता रहा है,
कैसे कर सकते हैँ………..
लेकर गये हम बस लाहौर,
दी आगरे मेँ दावत शानदार,
वो आ गया करगिल मेँ जमीँ कब्जाने,
कर गया लोकतन्त्र के मंदिर पर प्रहार,
कैसे कर सकते हैँ उस पर भरोसा……
सितम की उसके, इन्तहा होती नहीँ,
रचता हर रोज साजिश नयी,
कभी होता अक्षरधाम रक्तरँजित,
कभी त्रासदी झेलती मुँबई,
कैसे कर सकते हैँ उस पर भरोसा……
वादी-ए-गुल को बना दिया कब्रिस्तान,
बहशी बना दिये मासूम नौजवान,
अमन के खेत मेँ बोता है नफरत,
है मकसद जिसका तबाही-ए-हिन्दुस्तान,
कैसे कर सकते हैँ उस पर भरोसा……
आये दिन सरहद पर उगलता जहर,
करता हमारे सैनिकोँ के कलम सर,
हमारी मुखालफत है ताकत जिसकी,
तोङना चाहता है हमारा घर,
कैसे कर सकते हैँ उस पर भरोसा……
कहते हैँ माज़ी को भुलाना वाजिब है,
दुश्मन को दोस्त बनाना वाजिब है,
मगर दोस्तो जरा ये तो बताओ,
क्या आस्तीन मेँ साँप पालना भी वाजिब है,
कैसे कर सकते हैँ उस पर भरोसा……
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