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कैसा पैगाम-ए-अमन jagran junction forum

ijhaaredil
ijhaaredil
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वो क्या लायेँगे
पैगाम-ए-अमन,
बू-ए-खूँ जिनकी
सासोँ मेँ भरी है,
वो क्या मिलेंगे
दिल खोलकर गले,
जो कपङो के अन्दर
छुपाये छुरी हैँ,

मक्कारी की दौलत
पाये हैँ विरासत मेँ,
मिलता है सुकुँ जिनको
हमारी फजीहत मेँ,
वो क्या गायेँगे
तराने मुहब्बत के,
दिलोँ मेँ जिनके
नफरत भरी है,

नागोँ को दूध
जो हैँ पिलाते,
शैतानोँ को जो
बिरयानी खिलाते,
वो क्या करेँगे
जिंदगी की बातेँ,
मौत बाँटने की जिनको
आदत पङी है,

भाता नहीँ जिनको
गुलशन हमारा,
चुभता जिनकी आँखोँ मेँ
आबाद घर हमारा,
वो क्या चलेँगे
दो कदम साथ हमारे,
नीयत जिनकी
निहायत बुरी है,

नकाब पहनकर
क्या हाथ मिलाना,
सिर्फ होठोँ का खुलना
नही होता मुस्कुराना,
अरे वो क्या जलायेँगे
दोस्ती के चराग,
दगाबाजी जिनकी
नस नस मेँ भरी है,

फकत गले मिलाई की
रस्म मत निभा,
गर दोस्त है तो
दोस्ती का भरोसा दिला,
वो क्या बनेँगे हमनिवाला,
हमप्याला,
दिलोँ के दरम्याँ
जिनके दूरी है,

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