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प्रदूषित पर्यावरण एवँ मानव (jagran junction forum)

ijhaaredil
ijhaaredil
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पारा मुसलसल उपर चढ रहा है,

जिस्म औ जमीँ दोनोँ का ताप बढ रहा है,

धैर्य, सँयम की बर्फ पिघल रही है,

सहनशीलता के ध्रुवोँ का वजूद सिमट रहा है,

हो गये हैँ छेद रिश्ते नातोँ की परत मेँ,

स्वार्थ की किरणोँ से इन्सान झुलस रहा है,

घृणा, ईर्ष्या की अम्लीय वर्षा है होती,

हिँसा के समुन्दरोँ का पानी चढ रहा है,

भाईचारे, सदभाव के पेङ कट गये हैँ,

दरियादिली का जंगल हर रोज घट रहा है,

इंसानियत की नदियाँ दूषित हो गयी हैँ,

अनैतिकता का हवा मेँ जहर घुल रहा हैँ,

है कौन जिम्मेदार इस पतन का यारो,

मुझे तो मानव ही दानव
लग रहा है ।

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