ijhaaredil
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मेरे बचपन का गाँव,
वो बरगद की छाँव,
पानी का कुआँ,
अलावोँ का धुआँ,
चूल्हे की रोटी,
चटनी की सिलोटी,
कङी का बल्ला,
कपङे की गेँद,
गर्मी की दोपहर
मेँ बुजुर्गोँ का
ताश का खेल,
मीलोँ पैदल चलकर
स्कूल जाना,
चने और गेहूँ
भूनकर खाना,
लट्ठमार होली,
सादगी भरी दिवाली,
बेरी के बेर,
आम के पेङ,
कच्चे मकान और
कच्ची गलियाँ,
लहलहाते खेत मेँ जाना,
कोल्हू पर गर्म गुङ खाना,
भैँस की पीठ पर सवारी,
गाय बैलोँ की जुगाली,
पेङोँ पर चढना,
खेलते-2 लङना,
अंकित हैँ मस्तिष्क पटल पर
आज भी ऐसे,
हनुमान के हृदय पर
सियाराम की तस्वीर जैसे ।
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