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सजदे मैं तुम्हारे मैंने सर झुकाया | (पितृ दिवस पर)

ijhaaredil
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जब मैं स्नातकोत्तर का छात्र था, तब मेरे एक गुरूजी ने कक्षा मैं कहा था ” दुनिया में दो ही लोग ऐसे होते हैं जो दूसरे को अपने से आगे निकलता देखकर खुश होते हैं | मेरे एक सहपाठी ने प्रश्न किया ” सर, वे कौन-२ हैं ?” गुरूजी मुस्कुराकर बोले ” पिता और गुरु | पिता अपने पुत्र को अपने से अधिक सफल, सम्पन्न और सुविधासम्पन्न देखकर प्रसन्नता की अनुभूति करता है | इसी तरह गुरु अपने शिष्य को अपने से अधिक निपुण, प्रसिद्ध और प्रतिभाशाली देखकर गौरान्वित तथा संतुष्ट महसूस करता है |” इसीलिए तो हम हिंदुस्तानी अपने मातापिता को भगवन का दर्जा देते हैं | पिता परिवाररुपी किश्ती का नाखुदा होता है, जो अपनी पूरी शक्ति एवं सामर्थ्य से चप्पू को चलता है , ताकि परिवार कश्ती ग़मों की लहरों, जमाने के तूफानों में कभी न डगमगाए और बिना किसी व्यवधान के साहिल तक पहुँच जाये | पिता उस ढाल के समान होता है जो औलाद की ओर आने वाले प्रत्येक वार, प्रत्येक बाण को अपने ऊपर ले लेती है |

संतान को कष्ट में देखकर हर पिता भगवान से यही कामना करता हैं कि ” हे प्रभु ! ये कष्ट मुझे दे दे , मगर मेरे बच्चों को सही सलामत रख| |” इसी पर मुझे कुछ घटनाएं याद आ रही हैं | बचपन में हम गांव में रहते थे | रेलवे स्टेशन से हमारे गांव की दूरी लगभग दो किलोमीटर है | रास्ता थोड़ा उबड़-खाबड़ था | बरसात के दिनों में सांप आदि जीव जंतु अक्सर रास्ते पर निकल आते थे | जब कभी मैं पिता के साथ उस रास्ते पर जाता, तो वे मुझे अपने कंधे पर बैठा लिया करते थे, ताकि कोई जीव जंतु मुझे हानि न पहुंचा दे | जब मैं बड़ा हुआ तो भी पिता के भाव मेरे प्रति यही रहे | अब वो मुझे कंधे पर तो नहीं बैठा सकते थे , इसलिए मुझसे कहते ” तू पीछे चलना, मैं आगे चलूँगा, ऐसा न हो कि रस्ते पर कोई कीड़ा काँटा हो|” यह बातें यही दर्शाती हैं कि यदि कोई खतरा सामने है तो मातापिता उसे अपने ऊपर लेने में जरा भी नहीं हिचकिचाएंगे और कोशिश करेंगे कि संतान की सुरक्षा हो जाए, उनके यदि प्राण जा रहे हों, तो भले ही चले जाएँ |

पितृ दिवस अपने पिता को अपना सम्मान प्रकट करते हुए चंद पंक्तियाँ कह रहा हूँ |

ऊँगली पकड़कर तुमने चलना सिखाया,
कष्ट भरी राहों में कंधे पर उठाया ,
मेरे खुदा, मेरे मुर्शिद हो तुम ही,
जीने का मुझको तरीका बताया ,
जब भी आई मेरे चेहरे पर शिकन,
लूट गया तुम्हारे मन का चैन ,
करके हर जतन मेरा दर्द मिटाया,
ग़मों की बारिस आई जब सर पर ,
भीगने से बचाया तुमने छत बनकर,

मेरी खातिर खूब पसीना बहाया ,
सच्चे दिल से करता हूँ नमन,
ऋणी तुम्हारा मेरा सारा जीवन,
सजदे में तुम्हारे मैंने सर झुकाया |

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