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अभी कुछ दिन पहले हमारे जिले की एक विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ | सरकारी कर्मचारी होने के कारण मुझे चुनाव ड्यूटी पर नियुक्त किया गया | मेरी नियुक्ति मतदान अधिकारी द्वितीय के रूप में हुयी | मेरा कार्य मतदाता रजिस्टर 17 (क) में अंकित प्रविष्टियाँ पूरी करना तथा मतदाता की ऊँगली पर अमिट स्याही का निशान लगाना था |
रजिस्टर 17 (क) में कुल चार कॉलम होते हैं | प्रथम में क्रम संख्या जोकि पहले से ही छपी हुयी आती है, द्वितीय कॉलम में मतदाता के पहचान पत्र पर अंकित संख्या के अंतिम चार अंकों को लिखना पड़ता है, तृतीय कॉलम में मतदाता के हस्ताक्षर तथा अंतिम कॉलम पहचानपत्र का ब्यौरा देना होता है|
हम मतदान वाले नियत दिन से एक दिन पूर्व अपने मतदेय स्थल जोकि एक गावं स्थित था पहुंच गए | मतदान वाले दिन सुबह पांच बजे उठे और सारी तैयारियां करनी शुरू कर दी | मतदान ठीक सात बजे प्रारम्भ हो गया | जैसे-२ दिन आगे बढ़ता गया, मतदाताओं की कतार लम्बी होती चली गयी | मैँ अपना काम पूरी मुस्तैदी से कर रहा था | लेकिन मुझे ये देखकर बड़ी हैरानी हो रही थी कि लगभग तीस से चालीस प्रतिशत मतदाता हस्ताक्षर कर पाने में असमर्थ थे | मैं जब उनसे ये कहता कि अपने दस्तखत करो तो वे नकारात्मक उत्तर देते और अपना अंगूठा आगे कर देते | सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह थी कि उन अंगूठाछापों में केवल बुजर्ग ही नहीं, बल्कि अधेड़, और नौजवान भी थे |
शाम ६ बजे मतदान समाप्त हुआ | हमारे बूथ पर कुल ८२४ मत पड़े | मेरे मन में यह बात लगातार चुभ रही थी कि आज के दौर में भी, जबकि सरकार शिक्षा पर इतना जोर दे रही है, करोड़ों रूपये खर्च कर रही, देखूं तो कितने लोग अंगूठाछाप हैं | मैंने अंगूठों के निशान गिने तो पाया कि लगभग ४०% लोगों ने हस्ताक्षर के स्थान पर अंगूठे का प्रयोग किया है |
यह तो एक छोटे से गाँव की बात है ।यदि देश स्तर पर दशा को देखा जाये तो मन को कैसी निराशा हाथ लगेगी । सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ हमारे देश का साक्षरता प्रतिशत तकरीबन 75 है | कई राज्य तो पूर्ण साक्षर राज्य का दर्ज प्राप्त कर चुके हैं | सरकार द्वारा लोगों को स्कूल लाने के लिए विभिन्न योजनाएं- जैसे मिडडे मील योजना, छात्रवृति प्रदान करना, सर्वशिक्षा अभियान आदि चलाये जा रहे हैं, फिर क्यों इन अंगूठाछापों की संख्या कम नहीं हो रही है | अस्सी के दशक में प्रौढ शिक्षा योजना भी चली थी जिसका मतलब है कि आज तो देश में कोई भी चाहे वो बुजुर्ग ही क्यों न हो, निरक्षर नहीं होना चाहिए था |
आज हमारा देश चहुमुखी विकास की ओर अग्रसर है | आर्थिक शक्ति कि तौर हम तीव्र गति से उभर रहे हैं | हमारे तकनीकी ज्ञान का विश्व समुदाय लोहा मान रहा है | हमारे बुद्धिजीवी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति ओर सम्मान प्राप्त कर रहे हैं, ऐसे में ये अंगूठाछाप मखमल मेँ लगे टाट के पैबन्द की भाँति मुँह चिढाते प्रतीत होते हैँ ।
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