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भाजपा का मित्राघात

ijhaaredil
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आज कदाचित ही शिव सैनिकोँ के हृदय मेँ ये भाव बिच्छू की तरह डँक मार रहे होगेँ :-

वाह रे हरजाई,
खूब दोस्ती निभाईँ,
मुसीबत पङी तो
आ छिपा आँचल मेँ हमारे,
छुङा के हाथ चल दिया,
जब शुभ घङी आई,

महाराष्ट्र मेँ 25 साल पुराना भाजपा-शिव सेना गठबँधन अन्ततः टूट ही गया । सीटोँ के बँटवारे को लेकर दोनोँ को अङियल रूख की परिणति सम्बन्ध के रूप मेँ हुयी । लेकिन इसका दोषी कौन? सम्भवत् भाजपा ।

भाजपा को यह नहीँ भूलना चाहिए था कि शिव सेना ने हर दुख-सुख मेँ उनका साथ निभाया है । उनकी प्रत्येक अल्पमत वाली सरकार – 13 दिन, 13 महीने या साढे चार साल, को सर्मथन दिया । भाजपा-शिवसेना सदैव से ही चोली दामन का साथ रहा है । लेकिन आज जब उनके पास पूर्ण बहुमत है तो, इस कदर नशे मेँ चूर हो गये हैँ कि अपने विश्वसनीय मित्रोँ से भी कन्नी काटने लगे हैँ ।
जी हाँ, कुछ ऐसा ही होता है सत्ता का नशा । इसीलिए तो गोस्वामीजी ने रामचरित मानस मेँ लिखा है :

“नहीँ अस कोई जन्मा जग माहीँ,
प्रभुता पाय जाय मद नाहीँ”

मुझे इस सम्बन्ध विच्छेद के दो कारण दृष्टिगत होते हैँ – प्रथम- हम सभी जानते हैँ कि शिव सेना एक आक्रामक हिन्दूवादी दल है । हिन्दू हित ही उसका सर्वोपरि उद्देश्य है । जबकि सत्ता प्राप्ति के पश्चात भाजपा का रवैया, अटल सरकार की भाँति, अल्पसँख्यकोँ को रिझाने का रहा है । भाजपा जानती है कि शिवसेना उसकी राह मे रोङा बन सकती है । अब पूर्ण बहुमत होने के कारण सेना को साथ लेकर चलने की कोई बाध्यता तो है नहीँ, इसलिए उसे राह से हटा दिया ।
द्वितीय कारण है भाजपा और राकाँपा के मध्य बढती निकटता । लोकसभा चुनावोँ को दौरान भी हमने देखा था कि मोदी साहब शरद पँवार जी के प्रति हमलावर नहीँ हुये थे । इसके अतिरिक्त राज ठाकरे को समीप रखने के लिए उद्धव ठाकरे की उपेक्षा नितान्त आवश्यक है ।

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